भारत में राशन कार्ड की व्यवस्था केवल एक दस्तावेज नहीं बल्कि करोड़ों परिवारों की आर्थिक सुरक्षा का आधार है। स्वतंत्रता के बाद से शुरू हुई यह योजना आज तक देश के सबसे गरीब तबके को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने का काम कर रही है।
समय के साथ इस व्यवस्था में जो बदलाव आए हैं, वे न केवल तकनीकी उन्नति को दर्शाते हैं बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में उठाए गए कदमों का भी प्रमाण हैं। आज जब देश डिजिटल इंडिया की राह पर आगे बढ़ रहा है, राशन कार्ड व्यवस्था भी इस बदलाव का हिस्सा बनकर नए आयाम छू रही है।
राशन कार्ड व्यवस्था का इतिहास और विकास
भारत में राशन कार्ड की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी, जब खाद्यान्न की कमी के कारण सरकार को वितरण व्यवस्था को नियंत्रित करना पड़ा था। स्वतंत्रता के बाद 1950 के दशक में इसे व्यवस्थित रूप दिया गया और धीरे-धीरे यह देश की खाद्य सुरक्षा का मुख्य आधार बन गया।
मध्य प्रदेश के भोपाल जिले की रहने वाली 65 वर्षीय सुशीला देवी बताती हैं, “मेरे पास पिछले 40 सालों से राशन कार्ड है। पहले कितनी मुश्किल होती थी – लंबी कतारें, गलत वजन, कभी चावल मिलता था कभी नहीं। अब तो बायोमेट्रिक से तुरंत सामान मिल जाता है।”
1990 के दशक में Targeted Public Distribution System (TPDS) की शुरुआत के साथ राशन कार्डों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया – अंत्योदय अन्न योजना (AAY), प्राथमिकता परिवार (Priority Household – PHH), और अप्राथमिकता परिवार (Non-Priority Household)।
वर्तमान राशन कार्ड व्यवस्था की संरचना
आज के समय में राशन कार्ड व्यवस्था तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित है:
अंत्योदय अन्न योजना (AAY) कार्ड: यह सबसे गरीब परिवारों के लिए है, जिन्हें प्रति परिवार 35 किलो अनाज मिलता है। चावल 3 रुपये प्रति किलो और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो की दर से मिलता है।
प्राथमिकता परिवार (BPL) कार्ड: गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए है। इसमें 5 सदस्यों तक के परिवार को 5 किलो प्रति व्यक्ति की दर से अनाज मिलता है।
अप्राथमिकता परिवार (APL) कार्ड: गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए है, जिन्हें बाजार दर पर अनाज मिलता है।
राजस्थान के जयपुर जिले के राशन डीलर मनोज कुमार बताते हैं, “पहले राशन की दुकान चलाना बहुत मुश्किल था। रजिस्टर मैंटेन करना, हिसाब-किताब रखना, कभी-कभी झगड़े भी हो जाते थे। अब सब कुछ कंप्यूटर में है, गलती की गुंजाइश कम है।”
डिजिटलीकरण: क्रांतिकारी बदलाव
राशन कार्ड व्यवस्था में सबसे बड़ा बदलाव डिजिटलीकरण के रूप में आया है। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, Point of Sale (PoS) मशीनों का उपयोग, और ऑनलाइन डेटाबेस ने इस पूरी व्यवस्था को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में 99.9% राशन की दुकानों पर PoS मशीनें लगाई गई हैं। इससे न केवल पारदर्शिता आई है बल्कि गलत वजन और फर्जी कार्डधारकों की समस्या भी काफी कम हो गई है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी की रहने वाली कमला देवी कहती हैं, “पहले राशन वाला कम तौलता था, अब मशीन से सब कुछ सही-सही तुल जाता है। उंगली लगाने से पता चल जाता है कि कितना राशन मिला है।”
वन नेशन वन राशन कार्ड: मोबिलिटी की आजादी
2019 में शुरू हुई ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ योजना ने प्रवासी मजदूरों और नौकरीपेशा लोगों को बहुत राहत दी है। अब कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी राज्य से अपना राशन ले सकता है।
दिल्ली में काम करने वाले बिहार के मूल निवासी राजू यादव बताते हैं, “पहले गांव जाकर ही राशन लेना पड़ता था। अब दिल्ली में ही अपने राशन कार्ड से सामान मिल जाता है। कोविड के समय में यह बहुत काम आया।”
यह योजना खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान जीवनरक्षक साबित हुई, जब लाखों प्रवासी मजदूर अपने घर वापस जा रहे थे।
आधार लिंकेज: पहचान की समस्या का समाधान
राशन कार्ड को आधार से जोड़ना एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने डुप्लिकेट और फर्जी कार्डों की समस्या को काफी हद तक हल किया। हालांकि शुरुआत में कुछ तकनीकी समस्याएं आईं, लेकिन धीरे-धीरे व्यवस्था में सुधार हो गया।
गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली मीरा बेन कहती हैं, “पहले आधार लिंक होने में दिक्कत आई थी। उंगली का निशान पहचान नहीं पा रहा था। लेकिन अब सब ठीक है, OTP से भी काम हो जाता है।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 99.5% राशन कार्ड आधार से लिंक हो चुके हैं।
राज्यवार स्थिति और चुनौतियां
अलग-अलग राज्यों में राशन कार्ड व्यवस्था की स्थिति अलग है। तमिलनाडु, केरल, और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह व्यवस्था बेहतर है, जबकि कुछ उत्तरी राज्यों में अभी भी सुधार की गुंजाइश है।
तमिलनाडु में राशन की दुकानों पर चावल के अलावा दाल, तेल, चीनी, और कई अन्य सामान भी मिलता है। वहीं कुछ राज्यों में केवल गेहूं और चावल ही उपलब्ध है।
तमिलनाडु के चेन्नई की रहने वाली लक्ष्मी अम्मा बताती हैं, “यहां राशन की दुकान से तेल, दाल, चीनी सब कुछ मिलता है। गुणवत्ता भी अच्छी है। बच्चों को मुफ्त का दूध भी मिलता है।”
ग्रामीण बनाम शहरी: अलग चुनौतियां
गांवों में राशन कार्ड की पहुंच और शहरों में इसकी स्थिति में काफी अंतर है। गांवों में आज भी कई लोग इस योजना से वंचित हैं, जबकि शहरों में फर्जी कार्डधारकों की समस्या अधिक है।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के एक गांव के सरपंच रमेश पटेल कहते हैं, “हमारे यहां अभी भी कुछ परिवार ऐसे हैं जिनका राशन कार्ड नहीं बना है। कागजात की कमी या जानकारी न होने की वजह से वे इस योजना का फायदा नहीं उठा पा रहे।”
वहीं, मुंबई जैसे महानगरों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को राशन कार्ड बनवाने में पता का प्रमाण न होने की दिक्कत आती है।
महिला सशक्तिकरण में राशन कार्ड की भूमिका
राशन कार्ड बनवाने में महिला मुखिया को प्राथमिकता देने से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। ज्यादातर राशन कार्ड अब महिलाओं के नाम पर बनते हैं।
उड़ीसा की रहने वाली सुमित्रा सामंत कहती हैं, “राशन कार्ड मेरे नाम पर है। घर में मेरी अहमियत बढ़ गई है। पति भी अब फैसलों में मेरी राय लेते हैं।”
यह कदम न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है बल्कि घर में उनकी निर्णय क्षमता भी बढ़ाता है।
कोविड-19 काल में राशन कार्ड का महत्व
कोविड-19 महामारी के दौरान राशन कार्ड व्यवस्था ने अपना असली महत्व दिखाया। जब पूरा देश लॉकडाउन में था, तब राशन की दुकानें खुली रहीं और लोगों को खाना मिलता रहा।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज का वितरण किया गया। इससे करोड़ों परिवारों को भुखमरी से बचने में मदद मिली।
दिल्ली के एक ऑटो चालक सुरेश कुमार कहते हैं, “लॉकडाउन में काम बंद हो गया था। राशन की दुकान से मुफ्त अनाज मिलता रहा, वरना परिवार का पेट पालना मुश्किल हो जाता।”
खाद्य सुरक्षा कानून 2013: एक मील का पत्थर
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 ने राशन कार्ड व्यवस्था को कानूनी अधिकार का दर्जा दिया। इस कानून के तहत देश की 67% आबादी को सब्सिडी वाला अनाज पाने का अधिकार मिला।
इस कानून के तहत गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए गए। मातृत्व लाभ के रूप में 6,000 रुपये और बच्चों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गई।
केरल की रहने वाली डॉक्टर प्रिया नायर कहती हैं, “खाद्य सुरक्षा कानून से लोगों को पता चला कि राशन पाना उनका अधिकार है, कोई एहसान नहीं। अब वे अपने हक की बात करते हैं।”
तकनीकी चुनौतियां और समाधान
डिजिटलीकरण के साथ कई तकनीकी चुनौतियां भी आई हैं। नेटवर्क की समस्या, बायोमेट्रिक फेल होना, और बुजुर्गों को तकनीक समझने में दिक्कत जैसी समस्याएं आम हैं।
पश्चिम बंगाल के कोलकाता की राशन डीलर सुमित्रा घोष बताती हैं, “कभी-कभी नेटवर्क की समस्या हो जाती है। बुजुर्गों की उंगली का निशान पहचान नहीं पाता। ऐसे में हमें मैन्युअल entry करनी पड़ती है।”
इन समस्याओं के समाधान के लिए offline mode, OTP-based authentication, और helpline नंबर जैसी सुविधाएं शुरू की गई हैं।
भ्रष्टाचार में कमी: डिजिटलीकरण का फायदा
डिजिटलीकरण से राशन व्यवस्था में भ्रष्टाचार काफी कम हुई है। पहले राशन डीलर कम वजन देते थे, घटिया गुणवत्ता का सामान देते थे, या राशन को ब्लैक मार्केट में बेच देते थे।
हरियाणा के करनाल जिले के एक सामाजिक कार्यकर्ता विनोद शर्मा कहते हैं, “पहले राशन डीलरों से शिकायत करने पर वे गुस्सा हो जाते थे। अब तो सब कुछ रिकॉर्ड में है। गलत वजन देने की हिम्मत नहीं करते।”
केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुसार, राशन व्यवस्था से जुड़ी शिकायतों में 60% की कमी आई है।
भविष्य की योजनाएं और सुधार
सरकार राशन कार्ड व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है। इसमें मोबाइल ऐप के जरिए राशन बुकिंग, होम डिलीवरी, और पोषण युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करना है।
कुछ राज्यों में pilot project के रूप में राशन की होम डिलीवरी शुरू की गई है। बुजुर्गों और दिव्यांगजनों के लिए यह सुविधा बहुत मददगार साबित हो रही है।
मध्य प्रदेश सरकार के खाद्य विभाग के अधिकारी संजय तिवारी बताते हैं, “हम राशन में दाल, तेल, चीनी जैसी चीजें शामिल करने की योजना बना रहे हैं। साथ ही मिलेट्स को भी राशन में शामिल करने पर विचार कर रहे हैं।”
सामाजिक प्रभाव: गरीबी उन्मूलन में योगदान
राशन कार्ड व्यवस्था ने भारत में गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सब्सिडी वाला अनाज मिलने से गरीब परिवारों की खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ है।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में PDS की वजह से गरीबी में 12% की कमी आई है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
असम के गुवाहाटी की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रीता बरुआ कहती हैं, “राशन कार्ड से गरीब परिवारों की हालत में सुधार आया है। बच्चों को अब कुपोषण की समस्या कम हो रही है।”
Ration Card को लेकर बदल गया नियम
राशन कार्ड व्यवस्था निश्चित रूप से भारत के सबसे सफल सामाजिक कार्यक्रमों में से एक है। 70 से अधिक वर्षों में इसने करोड़ों लोगों को भुखमरी से बचाया है और खाद्य सुरक्षा प्रदान की है।
डिजिटलीकरण के साथ यह व्यवस्था और भी पारदर्शी और प्रभावी हो गई है। हालांकि अभी भी कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन सरकार इन्हें हल करने की दिशा में लगातार काम कर रही है।
भविष्य में राशन कार्ड व्यवस्था न केवल खाद्य सुरक्षा प्रदान करेगी बल्कि पोषण सुरक्षा भी देगी। मिलेट्स, दालें, तेल, और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करके इसे और भी बेहतर बनाया जा सकता है।
राशन कार्ड आज भी करोड़ों भारतीयों की जीवनरेखा है और आने वाले समय में भी यह देश की खाद्य सुरक्षा का मुख्य आधार बना रहेगा। यह व्यवस्था न केवल गरीबी उन्मूलन में मदद करती है बल्कि सामाजिक न्याय के सिद्धांत को भी मजबूत बनाती है।
इस पूरी यात्रा में राशन कार्ड एक साधारण दस्तावेज से कहीं अधिक बनकर उभरा है – यह गरीबों की गरिमा का प्रतीक है, उनके अधिकारों का संरक्षक है, और भारत के सामाजिक न्याय की मजबूत बुनियाद का हिस्सा है।